एक और बेहतरीन आर्टिकल में आपका स्वागत है आज की इस आर्टिकल में हम 30 साल तक मौन व्रत रखने वाली महिला Saraswati Devi Ram Mandir के बारे में चर्चा करने वाले हैं आज भी कुछ ऐसे रामभक्तों की कहानी जिनके दृढ़ संकल्प और अपनी-अपनी आस्था है। उनमें से एक ऐसी राम भक्त है जिनके बारे में आज पता चलेगा कि वह भगवान राम के भव्य मंदिर की परिकल्पना करोड़ों भक्तों ने की, लेकिन उनके जैसा भक्ति बहुत कम देखने को मिलेगा मगर कई गुमनाम भक्त ऐसे भी हैं जो कभी चर्चा में नहीं आए। इस आर्टिकल में ऐसे ही एक भक्तों की कहानी है जिसने 30 साल से मौन व्रत रखा है, इसलिए इनको मौनी माता के नाम से प्रसिद्ध है।
Saraswati Devi मौनी माता कौन और कहा की है
मौनी-माता (Saraswati Devi) झारखंड के धनबाद जिला के रहने वाली 85 वर्षीय महिला है और इन दिनों सोशल मीडिया पर ये चर्चा का विषय बनी हुई हैं। महिला का नाम सरस्वती देवी बताया जा रहा है, जिन्हें इन्हें लोग ‘मौनी माता’ के नाम से जाना जा रहा है।
Saraswati Devi मौनी माता व्रत क्यों रखा
कहां जा रहा है की मौनी-माता ने 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त पर प्रतिज्ञा की थी कि जब तक राम मंदिर का निर्माण चालू नहीं होता तब तक वह मौन व्रत रहने को ठान ली, और वह किसी से बात नहीं करेगी जैसा की सरस्वती देवी के परिवार वालों से पता चला की वह संकेतिक भाषा यानी इशारों से अपनी बात को बताती रहती थी।
लेकिन पिछले 5 सालों से वह दोपहर में 1 घंटे के लिए बात करती थी लेकिन 2019 के बाद कभी भी किसी से बात नहीं की है इनका बात ना करने का वजह यह भी है कि जब से प्रधानमंत्री मोदी जी ने राम मंदिर की आधारशिला रखने की बात कही है इसलिए वह पूरी तरह से चुप हो गई है और ये राम मंदिर के उद्घाटन के बाद बोलेंगी और तभी अपना प्रतिज्ञा तोडेंगे।
मौनी माता 7 महीने तक तपस्या की है
उनके परिवार वालों ने यह दावा किया है की सरस्वती देवी ने मध्य प्रदेश के चित्रकूट में सात महीने तक ‘तपस्या’ की थी, माना जाता है कि भगवान राम ने वहा अपने वनवास बिताया था। उन्होंने कहा, वे देशभर में तीर्थयात्राएं कीं और वे हर सुबह लगभग 4 बजे उठती हैं और सुबह लगभग 3 घंटे तक पूजा-पाठ करती हैं और रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता जैसी पुस्तकों का भी पाठ करती रहती हैं। वे सुबह-शाम एक गिलास दूध का पीती हैं और दिन में सिर्फ एक बार खाना खाती हैं पड़ोसी ने बताया हमने उन्हें कभी बात करते हुए नहीं देखा और उनका अधिकांश समय या तो प्रार्थनाओं या अपने पेड़ – पौधों की देखभाल में ही रहती थी।
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